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Saturday, January 29, 2011

एक अलग दुनिया है!




भूल गई थी
तुम्हारी भी एक दुनिया है!

तुम्हारा सूनापन
मेरा अकेलापन

तुम्हारे सूखे होठ
मेरी खिलखिलाती हँसी

तुम्हारे ठहराव
मेरे अन्तरंग भाव

तुम्हारे घाव की टीस
मैं बैठी थी आँखें मीच

जब हम मिले
फूल बहारो में खिले
मिट गए थे सभी फासले
पर भूल गई थी की
तुम्हारी भी एक दुनिया है!

तुम्हारी सीमाएं
तुम्हारी परिस्तिथियाँ
तुम्हारी ऊचाइयाँ
तुम्हारी गहराइया
तुम्हारी सच्चाईया
तुम्हारे नकाब
मुझसे तो अलग है ना!

Sunday, January 2, 2011

लिखना चाहती हूँ!

लिखना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हूँ

बेड़ियो में बिधी,
स्वतन्त्रा की सांस लेना चाहती हूँ

सूख चुके नयनो में अपने
जल प्रवाह के तीर छोड़ना चाहती हूँ

रात की भुझी राख में
चिनकारी की गर्मी खोजना चाहती हूँ

आज, जो खो चुकी अपनी आवाज़ मैं
गीत पुराने गुनगुना चाहती हूँ

सूख चुकी स्याही मेरी,
कलम फिर भी घिसना चाहती हूँ

आज फिर, लिखना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हूँ!